Saturday, September 15, 2007

... क्या कहना ?

शब-भर रहे इंतज़ार तेरा , शब-भर इसी तलब में जगना;
सुबह तुझको रूबरू पाना; उस सुबह का क्या कहना ?

बारीश के थमने पर भी, आब- - चश्म का बहना ...
हर एक अश्क़ में तेरा रुखसार, उस अश्क़ का क्या कहना ?

कभी यादें, कभी कशीश, कभी आरज़ू, कभी ख़लिश ...
कभी तेरी तड़प में जीना, उस तड़प का क्या कहना ?

गीला नहीं की उम्रभर , तुझी को ढूँढती रही नज़र ...
आख़िरी घड़ी तू नज़र आये , उस घड़ी का क्या कहना ?

~ Rups ~
एक ऐसी ही हसीं घड़ी - जब तू मेरे साथ हो;
थम जाये ज़िंदगी - जब तू मेरे साथ हो !!!

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